डॉ. रजनीश जैन के अनुसार बवासीर के लिए सर्वोत्तम होम्योपैथी उपचार

21-07-24
Dr Rajneesh Jain
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बवासीर, जिसे पाइल्स भी कहा जाता है, गुदा और मलाशय के निचले हिस्से में सूजन और तनाव की स्थिति है।

बवासीर क्या और क्यों  होता हे ? कारण

बवासीर, जिसे पाइल्स भी कहा जाता है, गुदा और मलाशय की नसों में सूजन की एक स्थिति है। यह वैरिकोज़

वेन्स के समान होता है, जिसमें नसें सूज जाती हैं और गांठ बन जाती हैं। बवासीर होने के कई कारण हो सकते हैं:

  • मल त्यागने के लिए ज्यादा जोर लगाना: इससे गुदा या मलाशय की नसों पर दबाव पड़ता है,

                                                                        जिससे बवासीर हो सकता है।

  • गर्भावस्था: गर्भावस्था के दौरान, मलाशय में उपस्थित ऊतक कमजोर हो जाते हैं,

                           और हार्मोन्स के कारण नसें सूज जाती हैं।

  • बढ़ती उम्र: 50 वर्ष से अधिक आयु के वयस्कों में बवासीर सबसे आम है।
  • पुरानी कब्ज़: मल त्यागते समय जोर देने से रक्त वाहिकाओं पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।
  • लंबे समय तक बैठना: विशेष रूप से शौचालय पर लंबे समय तक बैठने से बवासीर हो सकता है।
  • आहार: कम फाइबर वाले खाद्य पदार्थ खाने से बवासीर में योगदान हो सकता है।
  • हैवी लिफ्टिंग: बार-बार भारी सामान उठाने से बवासीर हो सकता है।
  • गुदा मैथुन: इससे नई बवासीर हो सकती है या मौजूदा बवासीर की स्थिति खराब हो सकती है।
  • वजन: अधिक वजन होने से बवासीर की संभावना बढ़ सकती है।
  • आनुवंशिक कारण: बवासीर की प्रवृत्ति विरासत में मिल सकती है।

यदि आपको बवासीर के लक्षण महसूस होते हैं, तो चिकित्सा सलाह लेना और उचित उपचार

प्राप्त करना महत्वपूर्ण है।

बवासीर के प्रकार हैं:

अंदरुनी बवासीर (Internal hemorrhoids)

बाहरी बवासीर (External hemorrhoids)

ये मलाशय के अंदर विकसित होते हैं और अक्सर दिखाई नहीं देते।

ये मलाशय के ऊपर विकसित होते हैं और गुदा की सतह पर गांठ केजैसे दिखाई पड़ सकते हैं1।

मुख्य लक्षण 

  • दर्दनाक मल त्याग: मल त्याग के दौरान दर्द या असुविधा हो सकती है।
  • ब्लीडिंग: मल त्याग के समय खून आना।
  • गुदा से स्राव: गुदा से एक बलगम जैसा स्राव निकल सकता है।
  • गुदा के पास सूजन या गांठ: गुदा के आसपास दर्दनाक सूजन या गांठ महसूस हो सकती है।
  • खुजली: गुदा क्षेत्र में खुजली हो सकती है, जो लगातार या रुक-रुक कर हो सकती है।

ये लक्षण बवासीर की गंभीरता पर निर्भर करते हैं और कभी-कभी जीवनशैली में बदलाव करने से या

उचित उपचार से इन्हें कम किया जा सकता है। यदि आपको इनमें से कोई भी लक्षण महसूस होते हैं,

तो चिकित्सा सलाह लेना महत्वपूर्ण है।

                             बवासीर में खान-पान का भी बहुत महत्व है। 

 सेवन करना चाहिए

 सेवन कम करना चाहिए

बवासीर में फाइबर युक्त आहार और पानी का सेवन

बढ़ाना चाहिए। फाइबर युक्त आहार से मल नरम होता है और मल त्यागने में आसानी होती है, जिससे बवासीर के लक्षणों में कमी आती है। ताजी हरी सब्जियां, फल, और पूरे अनाज का सेवन करना चाहिए।

    वहीं   मसाले और तेलिय

 फैट युक्त भोजन, अधिक मसालेदार खाना, कैफीन युक्त पेय, और अल्कोहल का सेवन कम करना चाहिए क्योंकि ये बवासीर के लक्षणों को बढ़ा सकते हैं।

बवासीर के होम्योपैथिक प्रबंधन में व्यक्तिगत लक्षणों के आधार पर उपचार किया जाता है।

  सल्फर, सेपिया, पल्सेटिला, फॉस्फोरस, नक्स वोमिका, नाइट्रिक एसिड, रेटेनहिया, काली मर, इग्नेशिया, हैमेमेलिस,

आर्सेनिकम एल्बम, अमोनियम कार्ब, एलो सोकोट्रिना, एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम, म्युरिएटिक एसिड, कोलिंसोनिया,

मेलीफोलियम आदि।

इन दवाओं का चयन रोगी के लक्षणों और समग्र स्वास्थ्य के आधार पर किया जाता है।

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https://shreerkhomoeopathyhospital.in/blog

 

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