“बच्चों की देखभाल में चिकित्सा पद्धतियों का चयन: एक विश्लेषण-Dr.Rajneesh Jain”

19-07-24
Dr Rajneesh Jain
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शिशुओं के लिए आहार उनकी उम्र और विकास के चरण के अनुसार तय किया जाता है। यहाँ कुछ सामान्य सुझाव दिए जा रहे हैं:

0 से 6 महीने

  • माँ का दूध: यह इस उम्र के शिशुओं के लिए सबसे उत्तम और पूर्ण आहार है। यह उन्हें सभी आवश्यक पोषक तत्व, एंटीबॉडीज और पानी प्रदान करता है.
  • फ़ॉर्मूला दूध: यदि माँ का दूध उपलब्ध नहीं है, तो डॉक्टर की सलाह से चुना गया फ़ॉर्मूला दूध एक विकल्प हो सकता है.

6 से 12 महीने

  • फलों की प्यूरी: जैसे कि मैश किया हुआ केला, सेब, और पपीता.
  • सब्जियों की प्यूरी: जैसे कि मैश किया हुआ आलू, गाजर, और चुकंदर.
  • अनाज की प्यूरी: जैसे कि चावल और मूंग दाल से बनी खिचड़ी.
  • सॉफ्ट इडली: यह शिशुओं के लिए हल्का और पौष्टिक भोजन होता है.

इन आहारों को धीरे-धीरे और छोटी मात्रा में शुरू करना चाहिए, और शिशु की प्रतिक्रिया के अनुसार आहार में विविधता लानी चाहिए। शिशु को नए आहार देते समय एलर्जी के लक्षणों के प्रति सजग रहना चाहिए। यदि आपको किसी भी प्रकार की चिंता हो, तो बच्चे के डॉक्टर से सलाह लेना सबसे उत्तम होता है।

शिशुओं के लिए प्रोटीन के स्रोत उनकी उम्र और विकास के चरण के अनुसार भिन्न होते हैं। यहाँ कुछ सुझाव दिए जा रहे हैं:

6 महीने से ऊपर के शिशुओं के लिए प्रोटीन स्रोत.

  • दालों की प्यूरी: दालें प्रोटीन का एक उत्तम स्रोत हैं। एक कप पकी हुई दाल में लगभग 17 ग्राम प्रोटीन होता है।
  • मैश की हुई खिचड़ी: मूंग की दाल और चावल से बनी खिचड़ी शिशुओं के लिए प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट का अच्छा स्रोत है।
  • सॉफ्ट इडली: इडली में चावल और दाल का मिश्रण होता है, जिसमें प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट होते हैं।

8 से 12 महीने के शिशुओं के लिए प्रोटीन स्रोत

  • अंडे की जर्दी: अंडे प्रोटीन का एक सस्ता और अच्छा स्रोत हैं। एक बड़ा अंडा लगभग 6 ग्राम प्रोटीन देता है।
  • मैश किया हुआ मीट: यदि आप मांसाहारी हैं, तो शिशु के लिए मैश किया हुआ चिकन या मछली भी प्रोटीन का अच्छा स्रोत हो सकता है।

शिशुओं के लिए आहार में प्रोटीन शामिल करते समय यह सुनिश्चित करें कि खाद्य पदार्थ सॉफ्ट हों और आसानी से पच सकें। शिशु की प्रतिक्रिया के अनुसार धीरे-धीरे नए खाद्य पदार्थ शुरू करें और एलर्जी के लक्षणों के प्रति सजग रहें। यदि आपको किसी भी प्रकार की चिंता हो, तो बच्चे के डॉक्टर से सलाह लेना सबसे उत्तम होता है।

यदि आप शाकाहारी हैं और अपने शिशु को प्रोटीन युक्त आहार देना चाहते हैं, तो निम्नलिखित खाद्य पदार्थ उपयोगी हो सकते हैं:

  1. दालें और फलियां: राजमा, लोबिया, मूंग दाल, और अन्य दालें प्रोटीन के अच्छे स्रोत हैं.
  2. सोया उत्पाद: टोफू, सोया मिल्क, और सोया आधारित फॉर्मूला शिशुओं के लिए प्रोटीन का एक विकल्प हो सकते हैं.
  3. अनाज: चावल, गेहूं, और ओट्स जैसे अनाज भी प्रोटीन का स्रोत होते हैं.
  4. नट्स और बीज: अगर शिशु बड़ा हो गया है तो बादाम, अखरोट, और चिया सीड्स जैसे नट्स और बीज भी प्रोटीन के अच्छे स्रोत होते हैं। इन्हें पीसकर या बटर के रूप में दिया जा सकता है.
  5. सब्जियां: ब्रोकोली, पालक, और अन्य हरी सब्जियां भी कुछ मात्रा में प्रोटीन प्रदान करती हैं.

शिशुओं के लिए आहार में प्रोटीन शामिल करते समय यह सुनिश्चित करें कि खाद्य पदार्थ सॉफ्ट हों और आसानी से पच सकें। शिशु की प्रतिक्रिया के अनुसार धीरे-धीरे नए खाद्य पदार्थ शुरू करें और एलर्जी के लक्षणों के प्रति सजग रहें। यदि आपको किसी भी प्रकार की चिंता हो, तो बच्चे के डॉक्टर से सलाह लेना सबसे उत्तम होता है।

शिशुओं के लिए कैल्शियम के स्रोत निम्नलिखित हो सकते हैं:

  1. माँ का दूध: यह नवजात शिशुओं के लिए कैल्शियम का प्राथमिक स्रोत है.
  2. फ़ॉर्मूला दूध: यदि माँ का दूध उपलब्ध नहीं है, तो डॉक्टर की सलाह से चुना गया फ़ॉर्मूला दूध भी कैल्शियम का अच्छा स्रोत हो सकता है1.
  3. दही: जब शिशु ठोस आहार लेना शुरू कर देते हैं, तो दही एक उत्तम कैल्शियम स्रोत हो सकता है.
  4. पनीर: यह भी शिशुओं के लिए कैल्शियम का एक अच्छा स्रोत है.
  5. हरी सब्जियां: ब्रोकोली, पालक और अन्य हरी सब्जियां कैल्शियम के अच्छे स्रोत हैं.
  6. फलियां: राजमा, चना और अन्य फलियां भी कैल्शियम प्रदान करती हैं.
  7. अनाज: रागी और अन्य अनाज शिशुओं के लिए कैल्शियम के स्रोत हो सकते हैं.
  8. बादाम और तिल: ये नट्स और बीज कैल्शियम के अच्छे स्रोत हैं.

शिशुओं के लिए कैल्शियम की आवश्यकता उनकी उम्र और विकास के चरण के अनुसार होती है। इसलिए शिशु के आहार में कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थ शामिल करते समय डॉक्टर की सलाह लेना महत्वपूर्ण है। शिशु की प्रतिक्रिया के अनुसार धीरे-धीरे नए खाद्य पदार्थ शुरू करें और एलर्जी के लक्षणों के प्रति सजग रहें।

बालकों के लिए प्रोटीन के स्रोत निम्नलिखित हो सकते हैं:

  1. दूध और दूध उत्पाद: दही, पनीर, छाछ, और दूध पाउडर.
  2. फलियां और दालें: मूंग, मटकी, चना, चौली, छोले, उड़द, मसूर, सोया.
  3. नट्स: मूंगफली, बादाम, अखरोट, पिस्ता, काजू.
  4. तिलहन: सूरजमुखी के बीज, तिल, फ्लैक्ससीड्स.

इन खाद्य पदार्थों को बालकों के आहार में शामिल करने से उनके शारीरिक विकास और मानसिक विकास में मदद मिलती है। प्रोटीन बालकों की हड्डियों, मांसपेशियों के निर्माण और स्वस्थ त्वचा के लिए भी आवश्यक है। इसके अलावा, बालकों को कुपोषण से बचाने के लिए भी प्रोटीन की आवश्यकता होती है।

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शिशुओं को कुछ खाद्य पदार्थ और पेय पदार्थ नहीं देने चाहिए,

क्योंकि वे उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं। यहाँ कुछ ऐसी चीजें दी जा रही हैं जिनसे बचना चाहिए:

  1. शहद: शिशुओं को पहले वर्ष में शहद नहीं देना चाहिए क्योंकि इसमें बोटुलिज्म के जीवाणु हो सकते हैं.
  2. गाय का दूध: पहले वर्ष में गाय का दूध नहीं देना चाहिए क्योंकि यह शिशु के पाचन तंत्र के लिए भारी होता है.
  3. चाय और कॉफी: कैफीन युक्त पेय शिशुओं के लिए उचित नहीं होते.
  4. चॉकलेट: चॉकलेट में भी कैफीन होता है और यह शिशुओं के लिए अनुचित है.
  5. नमक और चीनी: शिशुओं के आहार में अतिरिक्त नमक और चीनी से बचना चाहिए.
  6. संसाधित खाद्य पदार्थ: बिस्किट, चिप्स, और अन्य संसाधित स्नैक्स शिशुओं के लिए अनुचित हैं.
  7. छोटे और कठोर खाद्य पदार्थ: जैसे कि नट्स और कैंडी, जो गले में फंस सकते हैं.

शिशुओं के आहार में इन चीजों से बचने के अलावा, उन्हें ताजा और पौष्टिक खाद्य पदार्थ देना महत्वपूर्ण है। शिशु के आहार में नए खाद्य पदार्थ शामिल करते समय डॉक्टर की सलाह लेना और शिशु की प्रतिक्रिया के अनुसार धीरे-धीरे शुरू करना उचित होता है। यदि आपको किसी भी प्रकार की चिंता हो, तो बच्चे के डॉक्टर से सलाह लेना सबसे उत्तम होता है।

बालकों को निम्नलिखित चीजें नहीं खिलानी चाहिए:

  1. शहद: एक साल से कम उम्र के बच्चों को शहद नहीं देना चाहिए, क्योंकि इसमें बोटुलिज्म के जीवाणु हो सकते हैं.
  2. गाय का दूध: पहले वर्ष में गाय का दूध नहीं देना चाहिए, क्योंकि यह बच्चों के लिए भारी होता है और उनके पेट और आंतों को नुकसान पहुंचा सकता है.
  3. चॉकलेट और कैफीन युक्त पेय: छोटे बच्चों को चॉकलेट और कैफीन युक्त पेय जैसे चाय और कॉफी नहीं देने चाहिए.
  4. अत्यधिक नमक और चीनी: बच्चों के खाने में अतिरिक्त नमक और चीनी नहीं डालनी चाहिए.
  5. संसाधित खाद्य पदार्थ: बिस्किट, चिप्स, और अन्य संसाधित स्नैक्स बच्चों के लिए अनुचित हैं.
  6. छोटे और कठोर खाद्य पदार्थ: जैसे कि नट्स और कैंडी, जो गले में फंस सकते हैं.

इन चीजों से बचने के अलावा, बच्चों को ताजा और पौष्टिक खाद्य पदार्थ देना महत्वपूर्ण है। बच्चों के आहार में नए खाद्य पदार्थ शामिल करते समय डॉक्टर की सलाह लेना और बच्चे की प्रतिक्रिया के अनुसार धीरे-धीरे शुरू करना उचित होता है। यदि आपको किसी भी प्रकार की चिंता हो, तो बच्चे के डॉक्टर से सलाह लेना सबसे उत्तम होता है।

दवाओं का सेवन उचित या अनुचित होना उनके प्रयोग, खुराक, और व्यक्ति की स्वास्थ्य स्थिति पर निर्भर करता है। आमतौर पर, डॉक्टर या स्वास्थ्य विशेषज्ञ द्वारा निर्धारित दवाएं उचित मानी जाती हैं। वहीं, कुछ दवाएं जो विशेष स्थितियों में या बिना चिकित्सकीय सलाह के ली जाती हैं, वे अनुचित हो सकती हैं।

उचित दवाओं के उदाहरण:

  • आवश्यक दवाएं: जैसे कि एंटीबायोटिक्स, वैक्सीन, और दर्द निवारक दवाएं.
  • पुरानी बीमारियों के लिए दवाएं: जैसे कि उच्च रक्तचाप, मधुमेह, और अस्थमा के लिए दवाएं.

अनुचित दवाओं के उदाहरण:

  • अनियंत्रित उपयोग: बिना डॉक्टर की सलाह के दवाओं का अत्यधिक उपयोग.
  • गैर-जरूरी सप्लीमेंट्स: जिनकी आवश्यकता न हो.
  • प्रतिबंधित दवाएं: जिन्हें सरकार या स्वास्थ्य संगठनों द्वारा प्रतिबंधित किया गया हो.

दवाओं का सेवन करते समय यह सुनिश्चित करें कि वे डॉक्टर की सलाह अनुसार हों और उनकी खुराक सही हो। अगर आपको किसी दवा के बारे में संदेह है या आपको लगता है कि वह आपके लिए अनुचित है, तो तुरंत चिकित्सकीय सलाह लें। याद रखें, दवाओं का उपयोग सोच-समझकर और जिम्मेदारी से करना चाहिए।

होम्योपैथी दवाएं बच्चों के लिए एक लोकप्रिय और प्राकृतिक उपचार विधि मानी जाती हैं। इन्हें अक्सर बिना साइड इफेक्ट्स के सुरक्षित और प्रभावी माना जाता है। होम्योपैथी का उपयोग विभिन्न प्रकार की बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है, जिनमें क्रॉनिक बीमारियां, एलर्जी, त्वचा रोग, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, और बच्चों की बीमारियां शामिल हैं।

होम्योपैथी दवाएं प्राकृतिक स्रोतों से तैयार की जाती हैं और इन्हें बहुत ही कम मात्रा में दिया जाता है। इस चिकित्सा पद्धति का मूल सिद्धांत “समानता के सिद्धांत” पर आधारित है, जिसका मतलब है कि वह पदार्थ जो स्वस्थ व्यक्ति में किसी बीमारी के लक्षण उत्पन्न करता है, वही पदार्थ उसी बीमारी का इलाज कर सकता है जब उसे बहुत ही कम मात्रा में दिया जाता है।

हालांकि, होम्योपैथी दवाओं की सुरक्षा और प्रभावशीलता को लेकर बहस जारी है, और कुछ मामलों में, इन दवाओं के उपयोग से साइड इफेक्ट्स और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए, बच्चों को होम्योपैथी दवाएं देने से पहले एक योग्य होम्योपैथिक चिकित्सक से परामर्श लेना और उनकी सलाह के अनुसार ही दवाएं देना उचित होता है। यदि आपको किसी भी प्रकार की चिंता हो, तो बच्चे के डॉक्टर से सलाह लेना सबसे उत्तम होता है।

होम्योपैथी और एलोपैथी दोनों ही चिकित्सा पद्धतियाँ हैं जो विभिन्न दृष्टिकोणों से रोगों का इलाज करती हैं। यहाँ दोनों के बीच कुछ मुख्य अंतर दिए जा रहे हैं:

होम्योपैथी:

  • प्राकृतिक उपचार: होम्योपैथी प्राकृतिक स्रोतों से बनी दवाओं पर आधारित है.
  • समानता का सिद्धांत: यह उस पदार्थ को दवा के रूप में उपयोग करती है जो स्वस्थ व्यक्ति में बीमारी के समान लक्षण उत्पन्न कर सकता है.
  • कम खुराक: दवाएं बहुत कम मात्रा में दी जाती हैं और इसका उद्देश्य शरीर की प्राकृतिक चिकित्सा क्षमता को बढ़ाना है.
  • धीमी गति से काम करती हैं: होम्योपैथी दवाएं धीरे-धीरे काम करती हैं और लंबे समय तक चलने वाले इलाज के लिए प्रयोग की जाती हैं.

एलोपैथी:

  • आधुनिक चिकित्सा: एलोपैथी आधुनिक चिकित्सा पद्धति है जो वैज्ञानिक शोध और परीक्षणों पर आधारित है.
  • त्वरित उपचार: एलोपैथी दवाएं तुरंत राहत प्रदान करती हैं और आपातकालीन स्थितियों में प्रभावी होती हैं.
  • साइड इफेक्ट्स: इन दवाओं के कुछ साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं और ये अक्सर लक्षणों को दबाने के लिए काम करती हैं.
  • विशिष्ट इलाज: एलोपैथी विशेष रोगों और उनके लक्षणों के इलाज पर केंद्रित होती है.

दोनों पद्धतियों का अपना महत्व और उपयोगिता है, और रोगी की स्थिति और आवश्यकताओं के आधार पर चिकित्सक इनमें से किसी एक या दोनों का संयोजन कर सकते हैं132। इलाज का चयन करते समय रोगी की व्यक्तिगत प्राथमिकताएं और चिकित्सकीय सलाह महत्वपूर्ण होती है। यदि आपको इन पद्धतियों में से किसी एक का चयन करने में संदेह है, तो एक योग्य चिकित्सक से परामर्श लेना सबसे उत्तम होता है।

चिकित्सा के क्षेत्र में होम्योपैथी और एलोपैथी दोनों ही पद्धतियों का अपना महत्व और उपयोगिता है। इनमें से कौन सी पद्धति बेहतर है, यह व्यक्ति की स्वास्थ्य स्थिति, बीमारी की प्रकृति, और व्यक्तिगत पसंद पर निर्भर करता है।

होम्योपैथी को अक्सर लंबे समय तक चलने वाली बीमारियों और ऐसी स्थितियों के लिए पसंद किया जाता है जहां बिना साइड इफेक्ट्स के धीरे-धीरे उपचार की आवश्यकता होती है।

वहीं, एलोपैथी त्वरित उपचार प्रदान करती है और आपातकालीन स्थितियों, संक्रमणों, और गंभीर बीमारियों में अधिक प्रभावी होती है।

इसलिए, दोनों पद्धतियों का चयन व्यक्तिगत स्वास्थ्य आवश्यकताओं और चिकित्सकीय सलाह के आधार पर किया जाना चाहिए। यदि आपको इन पद्धतियों में से किसी एक का चयन करने में संदेह है, तो एक योग्य चिकित्सक से परामर्श लेना सबसे उत्तम होता है। अंततः, उपचार का चयन व्यक्ति की विशेष स्थिति और उसके चिकित्सक की सलाह पर निर्भर करता है।

होम्योपैथी उपचार शिशुओं और बच्चों के लिए विभिन्न सामान्य लक्षणों और उनके लिए अनुशंसित दवाओं के साथ निम्नलिखित 10 उदाहरण हैं:

  1. सर्दी और खांसी:

    • लक्षण: नाक बहना, खांसी, गले में खराश.
    • दवाएं: ब्रायोनिया, हेपर सल्फ, बेलाडोना.
  2. बुखार:

    • लक्षण: उच्च तापमान, ठंड लगना.
    • दवाएं: एकोनाइट, बेलाडोना, फेरम फॉस.
  3. दस्त:

    • लक्षण: बार-बार पतले मल, पेट में ऐंठन.
    • दवाएं: आर्सेनिक एल्ब, पोडोफाइलम, चाइना.
  4. उल्टी:

    • लक्षण: जी मिचलाना, भोजन का विरोध.
    • दवाएं: आइपेकैक, एंटीम क्रूड, नक्स वोमिका.
  5. दांत निकलना:

    • लक्षण: लार टपकना, चिड़चिड़ापन, गाल लाल.
    • दवाएं: चैमोमिला, कैल्केरिया फॉस, बेलाडोना.
  6. एलर्जी:

    • लक्षण: त्वचा पर चकत्ते, खुजली, छींक.
    • दवाएं: एपिस मेल, नैट्रम म्यूर, सल्फर.
  7. अस्थमा:

    • लक्षण: सांस लेने में कठिनाई, खांसी, सीटी बजना.
    • दवाएं: आर्सेनिक एल्ब, आइपेकैक, एंटीम टार्ट.
  8. गले में खराश:

    • लक्षण: निगलने में दर्द, लाल गला.
    • दवाएं: बेलाडोना, हेपर सल्फ, फाइटोलैक्का.
  9. कान का संक्रमण:

    • लक्षण: कान में दर्द, सुनने में कठिनाई.
    • दवाएं: बेलाडोना, म्यूरेटिक एसिड, पल्साटिला.
  10. चोट और घाव:

    • लक्षण: सूजन, दर्द, लाली.
    • दवाएं: आर्निका, कैलेंडुला, हाइपरिकम.

ये उदाहरण आम बीमारियों और उनके होम्योपैथिक उपचार के लिए सामान्य दवाओं का संकेत देते हैं। ध्यान दें कि ये दवाएं और उपचार व्यक्तिगत लक्षणों और चिकित्सकीय निदान पर आधारित होने चाहिए। इसलिए, किसी भी दवा का उपयोग करने से पहले एक योग्य होम्योपैथिक चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें।

शिशुओं और बच्चों में त्वचा संबंधी समस्याएं आम हैं, और उनके लिए होम्योपैथी उपचार भी उपलब्ध हैं। यहाँ 10 सामान्य त्वचा समस्याओं और उनके होम्योपैथिक उपचार के उदाहरण दिए जा रहे हैं:

  1. डायपर रैश:

    • लक्षण: डायपर क्षेत्र में लाली और चकत्ते.
    • दवाएं: कैलेंडुला, सल्फर.
  2. एक्जिमा:

    • लक्षण: खुजलीदार, लाल, और सूजी हुई त्वचा.
    • दवाएं: ग्राफाइट्स, रस टॉक्स.
  3. क्रैडल कैप:

    • लक्षण: शिशु के सिर पर पपड़ीदार परत.
    • दवाएं: नेट्रम म्यूर, सल्फर.
  4. हीट रैश:

    • लक्षण: गर्मी के कारण त्वचा पर छोटे लाल चकत्ते.
    • दवाएं: बेलाडोना, एपिस मेलिफिका.
  5. इम्पेटिगो:

    • लक्षण: त्वचा पर पीप से भरे छाले.
    • दवाएं: एंटीम क्रूड, हेपर सल्फ.
  6. मिलिया:

    • लक्षण: छोटे सफेद दाने, खासकर नाक और गालों पर.
    • दवाएं: ब्रायोनिया, सिलिसिया.
  7. चिकनपॉक्स:

    • लक्षण: खुजलीदार लाल चकत्ते और फफोले.
    • दवाएं: रस टॉक्स, एंटीम टार्ट.
  8. उर्टिकेरिया (हाइव्स):

    • लक्षण: खुजलीदार और उठे हुए लाल चकत्ते.
    • दवाएं: एपिस मेलिफिका, यूर्टिका यूरेंस.
  9. मौसमी एलर्जी:

    • लक्षण: त्वचा पर लाली और खुजली.
    • दवाएं: नैट्रम म्यूर, सल्फर.
  10. स्केबीज:

    • लक्षण: त्वचा पर खुजलीदार गलियारे और चकत्ते.
    • दवाएं: सल्फर, सेपिया.

शिशुओं और बच्चों में त्वचा संबंधी समस्याएं आम हैं, और होम्योपैथी में इनके लिए विभिन्न उपचार उपलब्ध हैं। यहाँ कुछ और सामान्य त्वचा समस्याओं और उनके होम्योपैथिक उपचार के उदाहरण दिए जा रहे हैं:

  1. वायरल एक्जांथेम:

    • लक्षण: त्वचा पर फैले लाल चकत्ते.
    • दवाएं: पल्साटिला, बेलाडोना.
  2. मोलस्कम कॉन्टेजिओसम:

    • लक्षण: त्वचा पर दाने जिनमें एक छोटा डिंपल होता है.
    • दवाएं: थूजा, नाइट्रिक एसिड.
  3. पिटायरियासिस अल्बा:

    • लक्षण: त्वचा पर सफेद या हल्के रंग के धब्बे.
    • दवाएं: नैट्रम म्यूर, सल्फर.
  4. एटोपिक डर्मेटाइटिस:

    • लक्षण: खुजलीदार, सूजी हुई, और लाल त्वचा.
    • दवाएं: ग्राफाइट्स, सल्फर.
  5. विटिलिगो:

    • लक्षण: त्वचा पर सफेद धब्बे.
    • दवाएं: सेपिया, आर्सेनिक एल्ब.
  6. इम्पेटिगो:

    • लक्षण: त्वचा पर पीप से भरे छाले.
    • दवाएं: एंटीम क्रूड, हेपर सल्फ.
  7. स्केबीज:

    • लक्षण: त्वचा पर खुजलीदार गलियारे और चकत्ते.
    • दवाएं: सल्फर, सेपिया.
  8. उर्टिकेरिया (हाइव्स):

    • लक्षण: खुजलीदार और उठे हुए लाल चकत्ते.
    • दवाएं: एपिस मेलिफिका, यूर्टिका यूरेंस.
  9. जिल्द की सूजन:

    • लक्षण: त्वचा पर सूजन और लाली.
    • दवाएं: रस टॉक्स, एपिस मेलिफिका.
  10. सोरायसिस:

    • लक्षण: त्वचा पर लाल, स्केली पैचेस.
    • दवाएं: आर्सेनिक एल्ब, सल्फर.

इन होम्योपैथिक उपचारों को शुरू करने से पहले एक योग्य होम्योपैथिक चिकित्सक से परामर्श लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित करें कि दवाएं और उपचार व्यक्तिगत लक्षणों और चिकित्सकीय निदान पर आधारित हों।इन उपचारों को शुरू करने से पहले एक योग्य होम्योपैथिक चिकित्सक से परामर्श लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित करें कि दवाएं और उपचार व्यक्तिगत लक्षणों और चिकित्सकीय निदान पर आधारित हों।

@Dr.Rajneesh Jain


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